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मैं नास्तिक क्यों हूँ ?

 भगवान् भगवान् भगवान् पर भगवान् कहा हैं ? बोलु मन्दिरों या महजीदों में कि पथरका पुजा करने के बाद या अल्लाह कि चादर ओहराकर, मुल्ला या शादु बन कर की चर्च में मोमबत्तियां जला कर। भगवान् मिलजायेगे। बोलों जी ? 

 ॥ नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते ॥

देखो दोस्त भगवान् कहा हैं हमको समझने ने फिरी हैं। पत्थर  मूर्तियां का दुद्ध से असलान न करवाने से तो अछा हैं।कि  किसी भुखेको खिलादो। मन्दिरों और महजीदों बनाने से अछा विद्यालय बनाओ। अल्लाह का चादर ओहराने से अछा कि किसी फकिरको चादर प्रदान करदों। किसी भुखेको खाना खिलादो। वेअसहारा की सहारा बन जाऔं। जिन्दगी कभी किसी धुखा नहीं देना चाहिए।कभी किसी सताना नहीं चाहिए। कभी किसी निराशा नहीं करना चाहिए और आस देना चाहिए। 


और तब बन जाती हैं आस्तिक! 

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